रायपुर से नक्सल मोर्चे पर एक बड़ी सफलता की खबर आ रही है। महाराष्ट्र में 61 नक्सलियों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है, जिसमें सीसी सदस्य सोनू दादा उर्फ भूपति भी शामिल है। इस बड़े पैमाने पर आत्मसमर्पण को सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक बड़ी सफलता माना जा रहा है।
क्योंकि इससे नक्सलियों की संख्या में कमी आई और शांति स्थापित करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया। लेकिन इस सफलता के बाद राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई।
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष दीपक बैज ने आत्मसमर्पण प्रक्रिया पर सवाल उठाए। बैज ने कहा कि आत्मसमर्पण करना तो सबको आता है, लेकिन इस प्रक्रिया में पारदर्शिता होनी चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि भाजपा के 15 साल के शासन में ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं। इसलिए सरकार को सभी आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के पूरे दस्तावेज़ जारी करने चाहिए ताकि लोगों को सच्चाई पता चल सके, लक्ष्य तेज़ी से बढ़ रहे हैं। मैंने कल कहा था कि आत्मसमर्पण कैसा होता है, यह सबको पता है। और आप सब जानते हैं कि पिछले 15 सालों में इस सरकार ने किस तरह का समर्पण किया है।
इसीलिए हम सभी आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों से अनुरोध करते हैं कि वे अपना बायोडाटा जनता के सामने प्रस्तुत करें, बताएं कि आत्मसमर्पण करते समय उनके पास क्या हथियार थे – क्या उनके पास एके-47 या राइफलें थीं – और बताएं।
इसका मतलब है कि आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों का पूरा रिकॉर्ड जारी किया जाना चाहिए, जिसमें उनके द्वारा किए गए अपराधों की संख्या भी शामिल हो। उपमुख्यमंत्री अरुण साहब ने इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि सभी आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के नाम और विवरण जारी कर दिए गए हैं, और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष को खुश होना चाहिए कि बस्तर क्षेत्र अब शांति और समृद्धि की ओर बढ़ रहा है।
अरुण साहब ने कांग्रेस पर अनावश्यक प्रश्न उठाकर भ्रम पैदा करने का आरोप लगाया और ज़ोर देकर कहा कि सरकार इस प्रक्रिया में पूरी निष्पक्षता और यथार्थवाद बनाए रख रही है। गौरतलब है कि हाल के दिनों में नक्सली गतिविधियों में उल्लेखनीय कमी आई है और सुरक्षा बलों के सामने आत्मसमर्पण करने का चलन बदस्तूर जारी है।
इस बीच, राजनीतिक बयानबाज़ी तेज़ हो गई है। कांग्रेस पार्टी पारदर्शिता की माँग कर रही है, जबकि सरकार आत्मसमर्पण प्रक्रिया को पूरी तरह से जायज़ ठहरा रही है। यह मुद्दा सिर्फ़ सुरक्षा और क़ानून-व्यवस्था का नहीं, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। सवाल उठता है: क्या सरकार आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की जानकारी पूरी पारदर्शिता के साथ सार्वजनिक कर रही है? क्या इस आत्मसमर्पण से सचमुच इस क्षेत्र में स्थायी शांति आएगी?
क्या राजनीतिक दल इस मुद्दे को सही दिशा में ले जा रहे हैं या सिर्फ़ राजनीतिक फ़ायदे के लिए इसका दोहन कर रहे हैं? नक्सल समस्या सिर्फ़ सुरक्षा की समस्या ही नहीं, बल्कि हमारे समाज और राजनीति के लिए भी एक चुनौती है। इस जंग में जीत हर पहलू को समझकर और सही कदम उठाकर ही संभव है।