अमेरिका ने भारत पर टैरिफ़ लगाया। इसके बाद भारत और चीन के बीच नज़दीकियाँ देखी गईं। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी SEO समिट के लिए चीन गए थे और ऐसा लग रहा था कि भारत और चीन के बीच संबंध सामान्य हो जाएँगे। लेकिन चीन अब झुकने को तैयार नहीं है। चीन लगातार भारत के ख़िलाफ़ नई-नई योजनाएँ और रणनीतियाँ बना रहा है और अब भारत ने भी जवाबी कार्रवाई करने का फ़ैसला किया है।
यह पूरा मामला ब्रह्मपुत्र नदी से जुड़ा है, जहाँ चीन बाँध बना रहा है। इसे देखते हुए भारत ने भी जवाबी तैयारी कर ली है। भारत भी जलविद्युत परियोजनाएँ शुरू करके चीन के मंसूबों को चुनौती देगा, चीन के मंसूबों को नाकाम करेगा और भारत के हितों की रक्षा करेगा। दरअसल, भारत ने ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा बाँध बनाने के जवाब में एक बड़ी जलविद्युत परियोजना शुरू करने का फैसला किया है।
इस परियोजना का लक्ष्य ब्रह्मपुत्र घाटी से 65 गीगावाट बिजली पैदा करना है और इसकी लागत 6.42 लाख करोड़ रुपये होगी। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने कहा है कि 2035 तक 12 उप-बेसिनों से बिजली प्राप्त करने के लिए ट्रांसमिशन लाइनें बिछाई जाएँगी।
ऊर्जा सचिव ने कहा कि हम ऊर्जा स्रोतों के विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और इस पर काम करेंगे। अब आप देखेंगे कि ब्रह्मपुत्र में 65 गीगावाट बिजली पैदा होगी। तो, आप समझ सकते हैं कि ख़ास तौर पर पूर्वोत्तर को इससे बहुत फ़ायदा होगा। यह जगमगा उठेगा। इसके अलावा, देश के अन्य हिस्सों में भी बिजली पहुँचेगी। इसके अलावा, ब्रह्मपुत्र पर बाँध बनाने की चीन की योजनाएँ भी नाकाम हो जाएँगी।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने कहा है कि 12 उप-बेसिनों से 10,000 किलोमीटर लंबी ट्रांसमिशन लाइनों की आवश्यकता होगी। इस योजना में पूर्वोत्तर राज्यों की 208 प्रमुख जलविद्युत परियोजनाएँ भी शामिल हैं। इसलिए, यह योजना, जो अब सरकार का निर्णय और भारत की प्रतिक्रिया है, पूर्वोत्तर के विकास के लिए महत्वपूर्ण होगी और इसे नई ऊँचाइयों पर ले जा सकेगी। इस संबंध में ऊर्जा मंत्रालय की ओर से एक बयान भी जारी किया गया है। आइए, सबसे पहले मंत्रालय का बयान साझा करते हैं।
फिर, हम बताएंगे कि यह योजना भारत के लिए रणनीतिक रूप से कितनी महत्वपूर्ण है। ऊर्जा मंत्रालय ने कहा है कि भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। इसलिए, बढ़ती ऊर्जा माँग को पूरा करने और दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, हमें टिकाऊ, किफायती और विश्वसनीय ऊर्जा स्रोतों का विकास करना होगा।
जलविद्युत का उपयोग न केवल नवीकरणीय बिजली के एक प्रमुख स्रोत के रूप में, बल्कि एक अत्यंत लचीले संसाधन के रूप में भी महत्वपूर्ण है। यह नवीकरणीय और पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों को एकीकृत करेगा। अब बड़ा सवाल यह है कि भारत ने यह योजना क्यों बनाई। ब्रह्मपुत्र घाटी में जलविद्युत की अपार संभावनाओं को देखते हुए, यह महसूस किया गया कि इस अनुमानित क्षमता से बिजली उत्पादन के लिए एक व्यापक पारेषण प्रणाली की आवश्यकता होगी।
परिणामस्वरूप, इस पारेषण प्रणाली की योजना बनाई गई है। मास्टर प्लान में पंप स्टोरेज प्लांट की 11,130 मेगावाट जलविद्युत क्षमता को अंतरराज्यीय पारेषण प्रणाली के साथ एकीकृत करना भी शामिल है। इसके अलावा, आइए हम बताते हैं कि भारत इस परियोजना को क्यों विकसित कर रहा है। चीन अपनी बाँध योजनाओं पर काम कर रहा है। इसलिए भारत ने भी यह मास्टर प्लान बनाया है।
जुलाई 2025 में खबर आई कि चीन भारत में बहने वाली और ब्रह्मपुत्र में परिवर्तित होने वाली तांगसो नदी के निचले हिस्से पर एक विशाल बाँध बनाने की योजना बना रहा है। यही ब्रह्मपुत्र नदी चीन में तांगसो के नाम से जानी जाती है और भारत में प्रवेश करने के बाद ब्रह्मपुत्र बन जाती है। इसलिए, जब यह खबर फैली कि चीन वहाँ एक बाँध बना रहा है, तो काम शुरू हो गया।
बीजिंग ने इस परियोजना को अपने कार्बन दक्षता लक्ष्यों और आर्थिक उद्देश्यों से जोड़ा है, और सरकारी समाचार एजेंसी, शिवा ने कहा है कि इससे उत्पन्न बिजली पूरे देश में वितरित की जाएगी। परिणामस्वरूप, भारत ने भी एक योजना तैयार की है। असम सरकार के जल संसाधन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, ब्रह्मपुत्र घाटी की औसत चौड़ाई लगभग 80 किलोमीटर है, और इसकी मुख्य नदी, ब्रह्मपुत्र, दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक है और औसत प्रवाह के मामले में पाँचवें स्थान पर है।
यह नदी हिमालय की कैलाश पर्वतमाला से 5,300 मीटर की ऊँचाई पर निकलती है। तिब्बत से होकर बहने के बाद, यह अरुणाचल प्रदेश से होते हुए भारत में प्रवेश करती है और असम व बांग्लादेश से होकर बंगाल की खाड़ी में मिलती है। यह समझना ज़रूरी है कि ब्रह्मपुत्र का जलग्रहण क्षेत्र तिब्बत में 1,000 किलोमीटर, भारत और भूटान में 2,400 किलोमीटर और बांग्लादेश में 47,000 किलोमीटर है।
इसके अलावा, ब्रह्मपुत्र बेसिन बांग्लादेश से संगम तक 580,000 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसलिए भारत अब इस समस्या के समाधान की योजना बना रहा है। यह भारत के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इसलिए भारत ने अब निर्णय लिया है कि हम वहां बिजली उत्पादन करेंगे और विशेष रूप से भारत ने यह निर्णय तब लिया है जब खबर है कि चीन जुलाई 2025 में वहां एक बांध बना रहा है।